Friday, January 16, 2009

एक कविता माँ के नाम

घर छोड़ा , बचपन छोड़ा , छोडा गुस्सा जिद भी तो
दूरी में भी साथ मेरी माँ ही नभाती है।
धुप हो या छाव हो या बारिस की गीली मिटटी
हर मौसम में माँ प्यार से सहलाती है।
जब भी कभी देखू किसी माँ बेटी साथ में तो ,
माँ याद कर मेरी आँख भर आती है।
दिन रात कम हो या वक्त हो जाए हवा ,
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।

गाव का जीवन और महलों के सुख मेरे,
माँ की गोदी और रोटी याद बहुत आती है ।
दुखी न हो दूर बैठी माँ मेरी कभी ,
दर्द में भी सुरभि अब आसू पी जाती है।
जब भी कहे माँ बेटा दूर से ही तो ,
दोस्तों की हसी में माँ की कमी खल जाती है ,
माँ माँ कह बुला रही सुरभि माँ तुझे,
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।

Wednesday, January 7, 2009

२००८ गया २००९ आया बहुत कुछ ले गया बहुत कुछ छोड़ गया। नए वर्ष के बीते हुए ६ दिन कुशल मंगल रहे। अब आगे की क्या स्थिति होगी इसबारे में कुछ भी नही कहा जा सकता।