घर छोड़ा , बचपन छोड़ा , छोडा गुस्सा जिद भी तो
दूरी में भी साथ मेरी माँ ही नभाती है।
धुप हो या छाव हो या बारिस की गीली मिटटी
हर मौसम में माँ प्यार से सहलाती है।
जब भी कभी देखू किसी माँ बेटी साथ में तो ,
माँ याद कर मेरी आँख भर आती है।
दिन रात कम हो या वक्त हो जाए हवा ,
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।
गाव का जीवन और महलों के सुख मेरे,
माँ की गोदी और रोटी याद बहुत आती है ।
दुखी न हो दूर बैठी माँ मेरी कभी ,
दर्द में भी सुरभि अब आसू पी जाती है।
जब भी कहे माँ बेटा दूर से ही तो ,
दोस्तों की हसी में माँ की कमी खल जाती है ,
माँ माँ कह बुला रही सुरभि माँ तुझे,
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।
आ भी जाओ माँ दूरी सही नही जाती है ।
Friday, January 16, 2009
Wednesday, January 7, 2009
Sunday, December 28, 2008
नया वर्ष मंगलमय हो......
मेरे सभी पाठको को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये। नया साल आप सभी के जीवन को खुशियों से भर दे। नूतन वर्ष की शुरुआत न जाने आतंकवाद और अपराध के किस नए अंदाज से हो। अब तो हर त्यौहार और उत्सव अपराध का डंका पीटते रहते है। इस बार अमेरिका में क्रिसमस पर संता शातिर बनकर लोगो को मौत की नीद सुला गया। मेरा सभी से कहना है की नव वर्ष बहुत धूम धाम से मनाये लेकिन ध्यान रखे आप के आस-पास का माहोल कैसा है।
Wednesday, November 19, 2008
एक बच्ची की चिट्ठी चाचा नेहरू के नाम
स्रोत-रविवार.कॉम
प्रिय चाचा नेहरू,आपके जन्मदिवस पर शुभकामनायें ! मैं मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के अजमगढ़ विकासखंड के तरौनी गांव की 6 वर्ष की बालिका हूँ. चाचा ! मैं आपका जन्मदिन, जो आपने हम बच्चों के नाम किया है; मनाना तो चाहती हूं परन्तु मना नहीं पा रही हूं. मैं सूखा रोग (कुपोषण) से जो ग्रसित हूं. गांव में लोग मुझे बड़ी ही दया से देखते हैं. कुछ बच्चे तो सूखा-सूखा कह कर चिढ़ा कर भाग भी जाते हैं पर मैं कुछ कर नहीं सकती हूं.
चाचा, मेरे हाथ-पैरों की चमड़ी सिकुड़ती ही जा रही है. बाल भूरे हो गये हैं. आंखों में कीचड़ ही कीचड़ आता रहता है. मक्खियां भी भिनभिनाती रहती हैं परन्तु चाचा मैं उन्हें भगा भी नहीं सकती हूं क्योंकि मेरे हाथ-पैर उठते ही नहीं हैं. मां-पिताजी दिन भर काम पर रहते हैं.
चाचा ! मुझे तो डर लगता है कि मैं जीवन में कुछ कर पाऊंगी कि नहीं ? उस दिन कोई सामाजिक संस्था वाले मेरी मां से कह रहे थे कि मैं या मेरे जैसे बच्चे जीवन में अपनी उत्पादक भूमिका नहीं निभा पाते हैं. चाचा आप कहते थे कि हर बच्चे को देश के काम आना है, पर ऐसे में मैं तो कुछ भी नहीं कर पाऊंगी ? लेकिन मेरे दो बड़े भाई-बहिन भी सूखे थे और वे मर कर आपके पास चले गये. कहीं मैं भी आपके न चली जाऊं, इसलिये मां अभी भी पेट से है. वैसे मेरे प्रदेश में प्रति 1000 जन्म पर 72 शिशु असमय ही आपके पास चले जाते हैं. विगत 40 महीनों में ही हमारे प्रदेश के 97223 शिशुओं को तो अपना पहला जन्मदिन भी नसीब नहीं हुआ. चाचा, हम लोग आदिवासी हैं. पिताजी बताते हैं कि हम लोगों के पास भी जंगल में भरपूर चीजें थीं. हमारी अपनी खेती की जमीनें थीं लेकिन पन्ना टाईगर रिजर्व के कारण हमें जंगलों से बाहर पटक दिया. आरोप मढ़ा कि हमने शेरों और जंगली जानवरों को मारा. चाचा ! आप तो जानते हैं कि हम आदिवासी और जंगली जानवर पीढियों से साथ रह रहे हैं. अब यहां बाहर आजीविका का भी कोई ठिकाना नहीं है. मेरी मां-पिताजी को अब हर साल तीन से चार महीनों के लिये पलायन करना पड़ता है. वहां तो मेरी और देखभाल नहीं हो पाती हैं. चार सालों से सूखा भी पड़ रहा है, ऐसे में हालात और भी खराब हैं. रोजगार गारंटी का काम भी नहीं मिल रहा है. विगत वर्षों में सरकार ने माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हुये अन्त्योदय अन्न योजना का कोटा भी 35 किलो से घटाकर 20 किलो कर दिया है. पन्ना के डॉक्टर ने मां को भी खून की कमी बताई है. वैसे प्रदेश की 70 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है. चाचा, मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि आप लोगों ने क्या इसी दिन के लिये आजादी की लड़ाई लड़ी थी कि आजाद भारत में बच्चों की कोई न सुने ? मेरे प्रदेश में सौ में से साठ बच्चे कुपोषित है. चाचा, प्रदेश में गंभीर कुपोषण की स्थिति देश में सर्वाधिक है. मध्य प्रदेश में 12.6 प्रतिशत बच्चे मेरी ही तरह गंभीर रूप से कुपोषित हैं, जबकि भारत में 6.4 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. यानी हमारे मध्य प्रदेश में 1335600 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. हमारे प्रदेश में प्रति 1 लाख जीवित जन्म पर 379 महिलायें मर जाती हैं. ऐसी स्थिति में यह कैसे सुनिश्चित होगा कि आजाद भारत में महिलाओं और बच्चों की बेहतरी हो रही है ?चाचा, वैसे तो मेरा पन्ना जिला, महिला एवं बाल विकास मंत्री का गृह जिला है लेकिन फिर भी हमारे यहां कई गांवों में आंगनबाड़ी नहीं हैं. हमारे गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र से हमें कभी-कभी दलिया ही मिलता है, जबकि सरकार ने तो मेनू के हिसाब से पोषणाहार की बात कही थी! 'भोजन का अधिकार अभियान' वाले बता रहे थे कि हमारे पोषण आहार के लिये प्रतिवर्ष 1320 करोड़ रूपयों की आवश्यकता है लेकिन सरकार ने केवल 255 करोड़ का ही आवंटन किया है तो ऐसे में तो दलिया मिलना स्वाभाविक है. हम बच्चों और महिलाओं के लिये सरकार सकल घरेलू उत्पाद का दशमलव एक (.1) फीसदी ही खर्च करती है. रोचक बात तो यह है कि एक तो पहले ही महिला एवं बाल विकास विभाग को जरुरत से कम बजट दिया जाता है और उस पर भी सरकार आवंटित राशि को खर्च नहीं कर पाती है.चाचा ! मेरे प्रदेश में 1.46 लाख आंगनबाड़ियों की आवश्यकता है, लेकिन 69238 केन्द्र ही संचालित हैं. इसके मायने अभी भी 21 लाख बच्चे समेकित बाल विकास सेवा की पहुंच से बाहर हैं. संचालित केन्द्रों के लिये भी पदों की स्थिति तो देखिये.
मैं आज आजादी के साठ साल बाद आपसे और सरकारों से यह पूछना चाहती हूं कि बच्चे किस विभाग की जिम्मेदारी हैं ?
वर्तमान में मध्य प्रदेश में सीडीपीओ के 366 पद स्वीकृत हैं लेकिन मई 2008 के मासिक बुलेटिन के अनुसार प्रदेश में अभी सीडीपीओ के 85 पद खाली हैं. कई जगहों पर पर्यवेक्षक इस पद के लिये प्रभारी के रूप में कार्य कर रहे हैं. कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, सहायक बाल विकास परियोजना अधिकारी के 114 स्वीकृत पदों में से 42 पदों पर ही नियुक्ति हुई है. शेष 72 पद अभी भी खाली हैं. बाल विकास परियोजना अधिकारी को लेकर यह भी महत्वपूर्ण है कि कितने आंगनबाड़ी केन्द्रों पर एक बाल विकास परियोजना अधिकारी तैनात होंगे, यह संख्या कहीं भी तय नहीं है. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि प्रदेश में 16 सीडीपीओ के पास 300 से ज्यादा आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, 138 सीडीपीओ के पास 200 से ज्यादा आंगनबाड़ी केन्द्र हैं. अशोक नगर के शहरी क्षेत्रों में 51 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तथा हरदा के शहरी क्षेत्रों में 67 केन्द्रों पर सीडीपीओ हैं. सीधी जिलें की सीधी परियोजना में 536 केन्द्रों पर एक सीडीपीओ की नियुक्ति की गई है. चितरंगी परियोजना में 409 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तथा पेटलावद परियोजना में 384 केन्द्रों पर एक सीडीपीओ की नियुक्ति की गई है. प्रदेश में पर्यवेक्षकों के 2681 स्वीकृत पदों में से 2398 पद भरे हैं अर्थात् 283 पद रिक्त हैं. चाचा ! ऐसा नहीं कि भाजपा सरकार में ही ऐसा हो रहा है, आपकी कांग्रेस पार्टी की सरकार में भी यही हूं. मैं तो दिग्विजय सिंह के जमाने से कुपोषित हूं. मैं 5 वर्ष से कुपोषण के प्रथम ग्रेड से आज चतुर्थ ग्रेड में पहुंच गई हूं और सरकारें आपस में आरोप मढ़ती रही हैं. अभी कुछ महीनों पहले ही सतना, खंडवा, श्योपुर और शिवपुरी में 361 बच्चों की कुपोषण से मौत हो गई और सरकार के साथ-साथ विभागों ने इन्हें कुपोषण से हुई मौत मानने से इंकार कर दिया. स्वास्थ्य विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग अपनी जिम्मेदार एक दूसरे पर डालते नजर आये. चाचा ! मैं आज आजादी के साठ साल बाद आपसे और सरकारों से यह पूछना चाहती हूं कि बच्चे किस विभाग की जिम्मेदारी हैं ? सरकार ने आज हम कुपोषित बच्चों के लिये पोषण पुनर्वास केन्द्र तो खोले, लेकिन कुल जमा 135. इन केन्द्रों में एक समय में कुल 1678 कुपोषित बच्चे रह सकते हैं यानी प्रदेश के अन्य 13 लाख बच्चे अपनी बारी का इंतजार करें या फिर मर जायें ? चाचा, इस हिसाब से तो प्रदेश सरकार को कुपोषण दूर करने में 33 वर्ष लगेंगे और तब तक हम जैसे लाखों बच्चे अपना पहला या दूसरा जन्मदिन मनाने के पहले ही आपके पास आ जायेंगे. चाचा ! मैं तो हैरान हूं कि प्रदेश की आज तक अपनी कोई स्वास्थ्य नीति नहीं है .चाचा ! मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं, जब बाल अधिकार संरक्षण के नाम पर गाल बजाने वाली तमाम सरकारें हम कुपोषित बच्चों के लिये कुछ ठोस कदम उठायेंगी और हम भी स्वस्थ होकर प्रदेश और देश के विकास में अपनी रचनात्मक और उत्पादक भूमिका निभा पायेंगे. चाचा ! हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब प्रदेश में एक भी बच्चा कुपोषित नहीं होगा और प्रत्येक बच्चा आपका जन्मदिन, जो कि आपने हमारे नाम किया है, मना पायेगा.
प्रिय चाचा नेहरू,आपके जन्मदिवस पर शुभकामनायें ! मैं मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के अजमगढ़ विकासखंड के तरौनी गांव की 6 वर्ष की बालिका हूँ. चाचा ! मैं आपका जन्मदिन, जो आपने हम बच्चों के नाम किया है; मनाना तो चाहती हूं परन्तु मना नहीं पा रही हूं. मैं सूखा रोग (कुपोषण) से जो ग्रसित हूं. गांव में लोग मुझे बड़ी ही दया से देखते हैं. कुछ बच्चे तो सूखा-सूखा कह कर चिढ़ा कर भाग भी जाते हैं पर मैं कुछ कर नहीं सकती हूं.
चाचा, मेरे हाथ-पैरों की चमड़ी सिकुड़ती ही जा रही है. बाल भूरे हो गये हैं. आंखों में कीचड़ ही कीचड़ आता रहता है. मक्खियां भी भिनभिनाती रहती हैं परन्तु चाचा मैं उन्हें भगा भी नहीं सकती हूं क्योंकि मेरे हाथ-पैर उठते ही नहीं हैं. मां-पिताजी दिन भर काम पर रहते हैं.
चाचा ! मुझे तो डर लगता है कि मैं जीवन में कुछ कर पाऊंगी कि नहीं ? उस दिन कोई सामाजिक संस्था वाले मेरी मां से कह रहे थे कि मैं या मेरे जैसे बच्चे जीवन में अपनी उत्पादक भूमिका नहीं निभा पाते हैं. चाचा आप कहते थे कि हर बच्चे को देश के काम आना है, पर ऐसे में मैं तो कुछ भी नहीं कर पाऊंगी ? लेकिन मेरे दो बड़े भाई-बहिन भी सूखे थे और वे मर कर आपके पास चले गये. कहीं मैं भी आपके न चली जाऊं, इसलिये मां अभी भी पेट से है. वैसे मेरे प्रदेश में प्रति 1000 जन्म पर 72 शिशु असमय ही आपके पास चले जाते हैं. विगत 40 महीनों में ही हमारे प्रदेश के 97223 शिशुओं को तो अपना पहला जन्मदिन भी नसीब नहीं हुआ. चाचा, हम लोग आदिवासी हैं. पिताजी बताते हैं कि हम लोगों के पास भी जंगल में भरपूर चीजें थीं. हमारी अपनी खेती की जमीनें थीं लेकिन पन्ना टाईगर रिजर्व के कारण हमें जंगलों से बाहर पटक दिया. आरोप मढ़ा कि हमने शेरों और जंगली जानवरों को मारा. चाचा ! आप तो जानते हैं कि हम आदिवासी और जंगली जानवर पीढियों से साथ रह रहे हैं. अब यहां बाहर आजीविका का भी कोई ठिकाना नहीं है. मेरी मां-पिताजी को अब हर साल तीन से चार महीनों के लिये पलायन करना पड़ता है. वहां तो मेरी और देखभाल नहीं हो पाती हैं. चार सालों से सूखा भी पड़ रहा है, ऐसे में हालात और भी खराब हैं. रोजगार गारंटी का काम भी नहीं मिल रहा है. विगत वर्षों में सरकार ने माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हुये अन्त्योदय अन्न योजना का कोटा भी 35 किलो से घटाकर 20 किलो कर दिया है. पन्ना के डॉक्टर ने मां को भी खून की कमी बताई है. वैसे प्रदेश की 70 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है. चाचा, मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि आप लोगों ने क्या इसी दिन के लिये आजादी की लड़ाई लड़ी थी कि आजाद भारत में बच्चों की कोई न सुने ? मेरे प्रदेश में सौ में से साठ बच्चे कुपोषित है. चाचा, प्रदेश में गंभीर कुपोषण की स्थिति देश में सर्वाधिक है. मध्य प्रदेश में 12.6 प्रतिशत बच्चे मेरी ही तरह गंभीर रूप से कुपोषित हैं, जबकि भारत में 6.4 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. यानी हमारे मध्य प्रदेश में 1335600 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. हमारे प्रदेश में प्रति 1 लाख जीवित जन्म पर 379 महिलायें मर जाती हैं. ऐसी स्थिति में यह कैसे सुनिश्चित होगा कि आजाद भारत में महिलाओं और बच्चों की बेहतरी हो रही है ?चाचा, वैसे तो मेरा पन्ना जिला, महिला एवं बाल विकास मंत्री का गृह जिला है लेकिन फिर भी हमारे यहां कई गांवों में आंगनबाड़ी नहीं हैं. हमारे गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र से हमें कभी-कभी दलिया ही मिलता है, जबकि सरकार ने तो मेनू के हिसाब से पोषणाहार की बात कही थी! 'भोजन का अधिकार अभियान' वाले बता रहे थे कि हमारे पोषण आहार के लिये प्रतिवर्ष 1320 करोड़ रूपयों की आवश्यकता है लेकिन सरकार ने केवल 255 करोड़ का ही आवंटन किया है तो ऐसे में तो दलिया मिलना स्वाभाविक है. हम बच्चों और महिलाओं के लिये सरकार सकल घरेलू उत्पाद का दशमलव एक (.1) फीसदी ही खर्च करती है. रोचक बात तो यह है कि एक तो पहले ही महिला एवं बाल विकास विभाग को जरुरत से कम बजट दिया जाता है और उस पर भी सरकार आवंटित राशि को खर्च नहीं कर पाती है.चाचा ! मेरे प्रदेश में 1.46 लाख आंगनबाड़ियों की आवश्यकता है, लेकिन 69238 केन्द्र ही संचालित हैं. इसके मायने अभी भी 21 लाख बच्चे समेकित बाल विकास सेवा की पहुंच से बाहर हैं. संचालित केन्द्रों के लिये भी पदों की स्थिति तो देखिये.
मैं आज आजादी के साठ साल बाद आपसे और सरकारों से यह पूछना चाहती हूं कि बच्चे किस विभाग की जिम्मेदारी हैं ?
वर्तमान में मध्य प्रदेश में सीडीपीओ के 366 पद स्वीकृत हैं लेकिन मई 2008 के मासिक बुलेटिन के अनुसार प्रदेश में अभी सीडीपीओ के 85 पद खाली हैं. कई जगहों पर पर्यवेक्षक इस पद के लिये प्रभारी के रूप में कार्य कर रहे हैं. कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, सहायक बाल विकास परियोजना अधिकारी के 114 स्वीकृत पदों में से 42 पदों पर ही नियुक्ति हुई है. शेष 72 पद अभी भी खाली हैं. बाल विकास परियोजना अधिकारी को लेकर यह भी महत्वपूर्ण है कि कितने आंगनबाड़ी केन्द्रों पर एक बाल विकास परियोजना अधिकारी तैनात होंगे, यह संख्या कहीं भी तय नहीं है. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि प्रदेश में 16 सीडीपीओ के पास 300 से ज्यादा आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, 138 सीडीपीओ के पास 200 से ज्यादा आंगनबाड़ी केन्द्र हैं. अशोक नगर के शहरी क्षेत्रों में 51 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तथा हरदा के शहरी क्षेत्रों में 67 केन्द्रों पर सीडीपीओ हैं. सीधी जिलें की सीधी परियोजना में 536 केन्द्रों पर एक सीडीपीओ की नियुक्ति की गई है. चितरंगी परियोजना में 409 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तथा पेटलावद परियोजना में 384 केन्द्रों पर एक सीडीपीओ की नियुक्ति की गई है. प्रदेश में पर्यवेक्षकों के 2681 स्वीकृत पदों में से 2398 पद भरे हैं अर्थात् 283 पद रिक्त हैं. चाचा ! ऐसा नहीं कि भाजपा सरकार में ही ऐसा हो रहा है, आपकी कांग्रेस पार्टी की सरकार में भी यही हूं. मैं तो दिग्विजय सिंह के जमाने से कुपोषित हूं. मैं 5 वर्ष से कुपोषण के प्रथम ग्रेड से आज चतुर्थ ग्रेड में पहुंच गई हूं और सरकारें आपस में आरोप मढ़ती रही हैं. अभी कुछ महीनों पहले ही सतना, खंडवा, श्योपुर और शिवपुरी में 361 बच्चों की कुपोषण से मौत हो गई और सरकार के साथ-साथ विभागों ने इन्हें कुपोषण से हुई मौत मानने से इंकार कर दिया. स्वास्थ्य विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग अपनी जिम्मेदार एक दूसरे पर डालते नजर आये. चाचा ! मैं आज आजादी के साठ साल बाद आपसे और सरकारों से यह पूछना चाहती हूं कि बच्चे किस विभाग की जिम्मेदारी हैं ? सरकार ने आज हम कुपोषित बच्चों के लिये पोषण पुनर्वास केन्द्र तो खोले, लेकिन कुल जमा 135. इन केन्द्रों में एक समय में कुल 1678 कुपोषित बच्चे रह सकते हैं यानी प्रदेश के अन्य 13 लाख बच्चे अपनी बारी का इंतजार करें या फिर मर जायें ? चाचा, इस हिसाब से तो प्रदेश सरकार को कुपोषण दूर करने में 33 वर्ष लगेंगे और तब तक हम जैसे लाखों बच्चे अपना पहला या दूसरा जन्मदिन मनाने के पहले ही आपके पास आ जायेंगे. चाचा ! मैं तो हैरान हूं कि प्रदेश की आज तक अपनी कोई स्वास्थ्य नीति नहीं है .चाचा ! मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं, जब बाल अधिकार संरक्षण के नाम पर गाल बजाने वाली तमाम सरकारें हम कुपोषित बच्चों के लिये कुछ ठोस कदम उठायेंगी और हम भी स्वस्थ होकर प्रदेश और देश के विकास में अपनी रचनात्मक और उत्पादक भूमिका निभा पायेंगे. चाचा ! हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब प्रदेश में एक भी बच्चा कुपोषित नहीं होगा और प्रत्येक बच्चा आपका जन्मदिन, जो कि आपने हमारे नाम किया है, मना पायेगा.
Subscribe to:
Posts (Atom)